Holy bible
धार्मिक समूह में कई विश्वासियों का मानना है कि: "परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में दर्ज हैं। बाइबल से अलग परमेश्वर के कोई वचन और कार्य नहीं हैं।" क्या ये कहना तथ्यों के अनुरूप है? क्या आपलोग यकीन से कहते हैं कि व्यवस्था के युग में यहोवा द्वारा किया गया हर एक कार्य सम्पूर्ण रूप से बाइबल में दर्ज है? क्या आपलोग वचन दे सकते हैं कि अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु के सभी वचन और कार्य सम्पूर्ण रूप से बाइबल में दर्ज हैं? अगर ये नज़रिया तथ्यों के अनुसार न हो तो नतीजा क्या होगा? क्या यह परमेश्वर को लोगों की नज़र में नीचा नहीं दिखायेगा, उन्हें सीमित और उनकी निंदा नहीं करेगा? क्या यह परमेश्वर के स्वभाव को अपमानित नहीं करता है? हमें पता होना चाहिये कि परमेश्वर ने जब अपने कार्य का हर चरण पूरा कर लिया, तो उसके सालों बाद बाइबल का संकलन उन लोगों ने किया जो परमेश्वर की सेवा करते थे। यकीनी तौर पर उसके कुछ अंश या तो गुम हो गये या हटा दिये गये। ये एक वास्तविकता है। पैगम्बरों के कुछ वचन हैं जो पुराने विधान में दर्ज नहीं हैं, लेकिन उन्हें प्राचीन बाइबल में शामिल किया गया है। नए विधान के, चार सुसमाचारों में प्रभु यीशु के बहुत से वचन दर्ज नहीं हैं। असल में, प्रभु यीशु ने कम से कम तीन साल तक प्रचार और कार्य किया। उन्होंने जो वचन बोले वे बाइबल में दर्ज वचनों से कई गुना अधिक हैं। ये एक तथ्य है जिससे कोई इनकार नहीं कर सकता। जैसे कि बाइबल में कहा गया है: "और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे संसार में भी न समातीं" (यूहन्ना 21:25)। प्रेरितों के कुछ पत्र भी बाइबल में दर्ज नहीं हैं। जब प्रभु यीशु लौटेंगे तो उन्हें और अधिक वचन कहने होंगे, और अधिक कार्य करने होंगे। क्या ये सब चीज़ें बाइबल में दर्ज की जा सकती हैं? बाइबल में केवल प्रभु यीशु की वापसी की भविष्यवाणी दर्ज की गई है। उनकी वापसी के बाद के उनके वचन और कार्य नहीं। इसका मतलब यह है कि, बाइबल में दर्ज किये गए परमेश्वर के वचन सीमित हैं। दरअसल ये वचन परमेश्वर की ज़िन्दगी के समुद्र की एक बूंद मात्र हैं, परमेश्वर के जीवन के खरबों भागों में से, सिर्फ दस-हजारवां भाग। इन तथ्यों को देखते हुए, अभी भी लोग कैसे कह सकते हैं कि परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में दर्ज हैं? वे कैसे कह सकते हैं कि बाइबल से परे परमेश्वर का कोई वचन और कार्य नहीं है? ऐसे बयान भी मनमाने हैं! ये बिल्कुल भी तथ्यों के अनुरूप नहीं हैं। कई लोग इस तरह के बयानों से नतीजे निकालते हैं कि परमेश्वर पर मानव की आस्था का आधार बाइबल है। ये निष्कर्ष सही नहीं है। बाइबल के आधार पर मानव का परमेश्वर पर विश्वास सही है, लेकिन एकमात्र बाइबल पर्याप्त नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण चीज़ पवित्र आत्मा के काम के आधार पर परमेश्वर पर विश्वास के पथ पर चलना है। इस तरह से ही परमेश्वर का अनुमोदन पाया जा सकता है। यदि बाइबल ही एकमात्र आधार है और पवित्र आत्मा का कोई कार्य नहीं है, तो क्या मानव बाइबल की सच्चाई को समझ सकेगा? तो क्या इंसान परमेश्वर को समझ पाएगा? यदि लोगों को परमेश्वर के वचन को समझने में गलती हो जाए और पवित्र आत्मा का ज्ञान न हो, तो क्या यह आसानी से लोगों को गुमराह नहीं करेगा? ये सभी वास्तविक समस्याएं हैं। यदि परमेश्वर के विश्वासियों के पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, तो वे कभी भी सत्य को हासिल नहीं कर पाएंगे, और न ही वे परमेश्वर को समझ पाएंगे। यदि परमेश्वर के विश्वासियों के पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, यहां तक कि अगर वो अक्सर बाइबल पढते हैं और उपदेशों को सुनते हैं, तब भी वे सच्चाई को समझ नहीं पायेंगे और वास्तविकता में प्रवेश नहीं कर पायेंगे। इससे पता चलता है कि जो लोग पवित्र आत्मा के कार्य के बिना परमेश्वर पर विश्वास करते हैं वे कुछ भी हासिल नहीं कर पायेंगे।