परमेश्वर की खोज में आत्मा युगों से लगी है। जैसे प्यासे को जल की चाह होती है। जीवात्मा परमात्मा से बिछुड़ने के पश्चात् महा कष्ट झेल रही है। जो सुख पूर्ण ब्रह्म(सतपुरुष) के सतलोक(ऋतधाम) में था, वह सुख यहाँ काल(ब्रह्म) प्रभु के लोक में नहीं है। चाहे कोई करोड़पति है, चाहे पृथ्वीपति(सर्व पृथ्वी का राजा) है, चाहे सुरपति(स्वर्ग का राजा इन्द्र) है, चाहे श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव त्रिलोकपति हैं। क्योंकि जन्म तथा मृत्यु तथा किये कर्म का भोग अवश्य ही प्राप्त होता है (प्रमाण गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5)। इसीलिए पवित्र श्रीमद् भगवद् गीता के ज्ञान दाता प्रभु(काल भगवान) ने अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि अर्जुन सर्व भाव से उस परमेश्वर की शरण में जा। उसकी कृपा से ही तू परम शांति को तथा सतलोक(शाश्वतम् स्थानम्) को प्राप्त होगा। उस परमेश्वर के तत्व ज्ञान व भक्ति मार्ग को मैं(गीता ज्ञान दाता) नहीं जानता। उस तत्व ज्ञान को तत्वदर्शी संतों के पास जा कर उनको दण्डवत प्रणाम कर तथा विनम्र भाव से प्रश्न कर, तब वे तत्वदृष्टा संत आपको परमेश्वर का तत्व ज्ञान बताएंग...
वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली की समस्याएँ संदर्भ हाल के दशकों में देश के आर्थिक, सामाजिक व अन्य क्षेत्रों में ढाँचागत एवं नीतिगत स्तर पर काफी प्रगति हुई है। फलस्वरुप देश की विकास दर तेज़ी से बढ़ी है। इस बढ़ती विकास दर ने अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी सुधारों को गति प्रदान की है, लेकिन इन परिवर्तनों ने हमारी शिक्षा व्यवस्था की मूल समस्याओं को दूर नहीं किया है। प्रस्तुत लेख में हम वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की विश्व में स्थिति, विद्यमान समस्याओं एवं संभावित समाधानों की चर्चा करेंगे। हाल के वैश्विक अध्ययन न्यूयॉर्क के ‘पी.ई.यू. रिसर्च सेंटर’ (Pew Research Center) द्वारा विश्व के 90 से अधिक देशों में स्कूली शिक्षा मानकों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। यह अध्ययन 'विश्व में धर्म एवं शिक्षा' नाम से किया गया| यह दुनिया के प्रमुख धर्मों के बीच "शैक्षिक प्राप्ति" (Educational Attainment) पर केंद्रित है। इसमें हिंदुओं में "शैक्षिक प्राप्ति" का स्तर सबसे कम पाया गया और भारतीय विद्यालयी शैक्षणिक व्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सबसे निम्न स्थान प्रदान ...
वासुदेव’ जो पूर्ण मोक्षदायक है हिन्दू धर्म के प्रमुख ईष्ट देव भगवान हैं श्री कृष्ण जी।प्रभुप्रेमियों के दिलों में श्रीकृष्ण जी का विशेष स्थान है। विष्णु जी के अवतार कृष्ण जी श्रावण माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। इसलिए इस दिन को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। पूरे भारतवर्ष में आज 3 सितंबर को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जा रही है। कोई कृष्ण को लल्ला, कान्हा, माखनचोर, सांवलिया, लड्डू गोपाल तो कोई कृष्णा कह कर प्रेम से पुकारता है। जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण की जन्म नगरी मथुरा भक्ति के रंगों में जीवंत हो जाती है। प्रत्येक त्योहार में लोकवेद की अहम भूमिका रही है। लोकवेद के अनुसार जन्माष्टमी में स्त्री-पुरुष बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। और रासलीला का आयोजन होता है। स्कन्द पुराण के मतानुसार जो भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत नहीं करता, वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। भविष्य पुराण का वचन है- भाद्रपद मास के शुक्ल ...